DVD क्या है? DVD full form क्या है?

लंमे अरसे तक डीवीडी लोगो के वीच डिजिटल डेटा स्टोरेज का एक भरोसेमंद एवम लोकप्रिय पोरटेवल डिवाइस के रुप मे काफी चर्चा मे था। इस चमत्कारी डिवाइस ने लोगो के लिए डिजिटल मनोरंजन को काफी आसान बना दिया। यह अविश्वसनीय रूप से बड़े से बड़े डिजिटल फाईलो को अपने अन्दर समेट लेने कि क्षमता रखता था।

यह वह दोड़ था जब खोजकर्ता किसी ऐसी तकनिक की तलाश मे था जो बड़े पेमाने मे डिजिटल डेटाओ को स्टोर किया जा सके और साथही लंबे समय तक उन्है वरकरार रंखा जा सके। सौधकर्ताओ की आपनी मेहनत रंग लाई और उन्है डीवीडी के रुप मे परिनाम प्राप्त हुया।

इसकी आबिस्कार को आप डिजिटल युग की एक और माइलस्टोन मान सकते है जौ आगे आने दिनो मे डिजिटल दुनिया का मार्ग प्रसस्थ करने बाला है। लेकिन, क्या आपके पास इस चमत्कारी स्टोरेज डिवाइस के बारे मे पर्याप्त जानकारी है? और किया आप DVD का full form क्या है? इसके बारे में जानकारी रखते है?

हालाँकि, स्ट्रीमिंग प्लेटफ़ॉर्म और ऑनलाइन सामग्री की अधिक उपलब्धता के कारण हाल के दिनों में इसकी लोकप्रियता में कुछ गिरावट आई है। लेकिन कुछ लोग इसे ऑफलाइन मीडिया या पर्सनल स्टोरेज डिवाइस के रूप में अभी भी उपयोग कर रहे हैं।

DVD क्या है?

यह ऑप्टिकल फाइबर से बना एक डिजिटल डेटा स्टोरेज मीडिया है। इसका रूप और रंग बिल्कुल सीडी जैसा है, लेकिन क्षमता और प्रदर्शन के मामले में यह सीडी से कहीं ज्यादा है। डेटा स्टोरेज की यह तकनीक नब्बे के दशक के मध्य में काफी लोकप्रिय हुआ करती थी। लेकिन इंटरनेट की आसान और व्यापक पहुंच के कारण इस तकनीक को अधिक प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा और नवीनतम तकनीक के सामने यह फीकी पड़ने लगी।

dvd full form

DVD full form क्या है?

इसका पूरा नाम डिजिटल वीडियो डिस्क या डिजिटल वर्सटाइल डिस्क है। यह एक ऑप्टिकल डिस्क है जिसका उपयोग मूवी, संगीत और वीडियो जैसे डिजिटल डेटा को संग्रहीत करने के लिए किया जाता है। यह अद्भुत यादों से भरे खजाने की तरह है जहां किसी का अतीत भविष्य में देखने के लिए संग्रहीत किया जा सकता है।

जहां आप अपनी पसंदीदा फिल्मों या टीवी शो के साथ अपने पसंदीदा पलों को फिर से जी सकते हैं और दैनिक जीवन के तनाव से छुट्टी लेकर खुद को तनावमुक्त महसूस कर सकते हैं। आप इसे एक टाइम मशीन की तरह सोच सकते हैं जहां लोग अतीत की सैर करते हैं और पुरानी यादों के एहसास के साथ एक खूबसूरत यात्रा करते हैं।

डीवीडी कितने प्रकार के होते हैं?

यह डिजिटल फाईले, जैसे कोई अडिउ या विडिउ फाईल, सॉफ्टवेयर, या कोई भी अन्य डिजिटल फाईले जिन्है आपको लगा है की इसे संग्रहीत किया जाना चाहिए जिसका उपीयोग बाद मे किया जा सकता है या आपको बाद मे इसकी आबश्यकता है, ऐसी डिजिटल फाईलो को इस मे स्टोर किया जा सकता है और किसी दुसरे को वितरित किया जा सकता है।

वे कई अलग अलग प्रकार के होते ते हैं, और हर एक के अलग अलग फाएदे एवम विशेषताएं होती हैं। इनमे से मुख्य प्रकार के डीवीडी डिस्क निन्म रुप हैं।

सिर्फ पढ़ने योग्य डीवीडी डिस्क

DVD-ROM: ROM शब्द को रीड-ओनली मेमोरी के रूप में जाना जाता है। इसका मतलब है कि इस प्रकार की डीवीडी का उपयोग केवल पढ़ने के उद्देश्य से किया जा सकता है और इस पर प्रस्तुत किसी भी डेटा को ओवरराइट या मिटाने की अनुमति नहीं है। इनका उपयोग आम तौर पर किसी भी एप्लिकेशन सॉफ्टवेयर, किसी भी डॉक्यूमेंट्री या मूवी, संगीत और अन्य डिजिटल प्रारूप डेटा को वितरित करने के लिए किया जाता है। इसे केवल पढ़ने के लिए तैयार किया जाता है और मूल सामग्री पर किसी भी तरह की संशोधन या विलोपन को रोकता है। इन्हें किसी भी डीवीडी प्लेयर या ऐसे कंप्यूटर पर चलाया जा सकता है जिसमें डीवीडी-रोम ड्राइव उपलध्ब हो।

रिकॉर्ड करने या लिखने योग्य डीवीडी डिस्क

DVD-R और DVD+R: वे दोनों ही रिकॉर्ड करने योग्य या लिखने योग्य और काफी हदतक समान स्टोरेज डिवाइस के दो प्रकार हैं। डीवीडी (-आर) और (+आर) दोनों का मतलब डिजिटल वर्सेटाइल डिस्क रिकॉर्ड करने योग्य है, और इन दोनों डिस्क का उपयोग वीडियो फ़ाइलों, डिजिटल डेटा, संगीत या आवाज़ और ऐसी अन्य रिकॉर्ड करने योग्य डिजिटल जानकारी रिकॉर्ड करने के लिए किया जाता है।

हालाँकि, दोनों अपनी विशेषताओं और लाभों के साथ समान हैं, लेकिन उनमें थोड़ा अंतर यह है कि DVD-R डेटा रिकॉर्ड करने के लिए पहले या पुरानी विधि का उपयोग करता है, जिसका अर्थ है कि डिजिटल जानकारी रिकॉर्ड करने में कम उन्नत है क्योंकि यह रिकॉर्डिंग के दौरान त्रुटियों की जाँच नहीं करता है। लेकिन डीवीडी+आर रिकॉर्डिंग के दौरान त्रुटियों की जाँच करने में सक्षम है। DVD-R के साथ एक और नुकसान यह है कि यह ड्रैग और ड्रॉप सुविधा का समर्थन नहीं करता है। लेकिन DVD+R इसका वखुभी समर्थन करता है।

डिवाइस की संगतता के संदर्भ में कहा जाए तो, दोनों ही डिस्क डीवीडी प्लेयर और डीवीडी-रोम ड्राइव के साथ पढ़ा जा सकता हैं। हालाँकि, कुछ पुराने या कम उन्नत डीवीडी प्लेयर या ड्राइव एक प्रकार डिस्क के साथ संगत नहीं हो सकते हैं। यहाँ आपको अपनी ज़रूरत के हिसाब से डिस्क कि टाइप को इस्तेमाल करने से पहले अपने ड्राइव के स्पेसिफिकेशन की जाँच करनी होगी।

बाकी दोनों ही सिंगल-यूज़ डिस्क हैं, जिसका मतलब है कि एक बार जब आप डिस्क पर डेटा लिख ​​लेते हैं, तो आप उसे मिटा या ओवरराइट नहीं कर सकते। अगर आपको उस डेटा को एडिट या सुधारना है या डिस्क में नई जानकारी जोड़नी है, तो आपको DVD-RW या DVD+RW जैसी रीराइटेबल डिजिटल वर्सेटाइल डिस्क के इस्तेमाल पर सोच विचार करना होगा।

पुनर्लेखन या मिटाने योग्य डीवीडी डिस्क

DVD-RW: यह भी बाकी डिस्को की तरह एक DVD डिस्क है जिसमे ध्वनि यहा तक की इसमे छवियों को भी रिकॉर्ड एवम स्टोर किया जा सकता है। यह डिजिटल वीडियो डिस्क रीराइटेबल या डिजिटल वर्सेटाइल डिस्क रीराइटेबल का संक्षिप्त करण है। इसमे डेटा को कई बार फ़ॉर्मेट या रीराइट किया जा सकता है। RW इसकी रीराइट करने की क्षमता को दर्शाता है। जिसका मतलब यह है कि आप आपने डिजिटल फ़ाइलों को स्थानांतरित करने या सहेजने के लिए बार-बार इसका उपयोग कर सकते है। हलांकी रीराइट करने से पहले आपको इस पर पहले से मौजूद डेटायो को मिटाना होगा। DVD-RW डिस्क को अधिकांश DVD प्लेयर और ड्राइव द्बारा पढ़ा या चलाया जा सकता है।

DVD+RW: (+RW) द्बारा चिन्हित बाली यह डिस्क इस बात को दर्शाता है की यह एक रीराइटेबल डिस्क है। इसका मतलब यह है की इस फ़ॉर्मेट के तहत डेटा को कई बार रिकॉर्ड किया सकता है, मिटाया जा सकता है या इस पर फिर से डेटा लिखा जा सकता है। (+RW) डिस्क (-RW) की तुलना में लिखने की गति एवम दक्षता अधिक तेज़ होते हैं और रिकॉर्डिंग के दौरान त्रुटियाँ होने की संभावना कम से कम होती है।

इसे अधिकांश DVD प्लेयर डिवाईस और DVD-ROM ड्राइव द्बारा पढ़ा या रन किया जा सकता है। एक रीराइटेबल डिस्क में इंडस्ट्री स्टैण्डर्ड मान्यतानुसार प्रति साइड 4.7GB तक का डेटा रीराइटे किया जा सकता है बही एक डबल साइडेड डिस्क में 9.4GB तक का डेटा रीराइटे किया जा सकता है। इसकी एक ओर एडभानटेज यह की वे लोजलेस लिंकिंग के साथ साथ, CLV और CAV रिकॉर्डिंग फ़ॉर्मेट दोनों का समर्थन करता है।

DVD-RAM: RAM एक रीराइटेबल डिस्क टाइप है जिसे रैंडम एक्सेस मेमोरी के तौरपर जाना जाता है। यह -RW और +RW बाले रीराइटेबल डिस्क से अलग तकनीक का उपयोग करता है। RAM डेटा को छोटे-छोटे ब्लॉक और रेनडम एक्सेस द्बारा डेटा रिकॉर्ड करने और आबश्यकतानुसार उन्है मिटाने मे उपीयोगकर्ताओ को क्षमता प्रदान करता है। और इसकी यही एडभानटेज उपीयोगकर्ता के निकट डेटा बैकअप या स्टोरेज माध्यम के रूप में इसे अधिक उपयोगी बनाता है।

इसके अलाबा यह डिस्क अपनी टिकाऊपन और लंबी उम्र के लिए भी उपीयोगकर्ताओ के विच काफी लोकप्रिय मानी जाती हैं। हालाँकि, RAM डिस्क के साथ एक बडी समस्या यह है की वे -RW और +RW की तुलना में कम समर्थित हैं और कुछ DVD प्लेयर और ROM ड्राइव के साथ वे विलकुल भी संगत नहीं रखता।

DVD कैसे काम करता हैं?

यह भी बिलकुल कॉम्पैक्ट डिस्क यानि एक सीडी की तरह ऑप्टिकल डेटा स्टोरेज तकनीक का उपीयोग करता है।यह एक लेजर-नक़्क़ाशीदार सर्पिल ट्रैक का उपयोग करके डेटा स्टोर करता है जो डिस्क के केंद्र से शुरू होता है और बाहरी किनारे तक फैला होता है।इस ट्रैक में सूक्ष्म गड्ढे और समतल क्षेत्र होते हैं जो डिस्क पर एन्कोडेड डिजिटल जानकारी का प्रतिनिधित्व करते हैं। प्लेबैक प्रक्रिया में डिस्क की सतह पर एक कम-शक्ति उत्सर्जन करने बाले एक लेजर बीम ड्राइव होते हैं।

अब जब लेज़र एक गड्ढे का सामना करता है, तो यह एक समतल क्षेत्र का सामना करने की तुलना में अलग तरह से प्रतिबिंबित होता है। इस प्रतिबिंब परिवर्तन को एक सेंसर द्वारा पता लगाया जाता है, और डिस्क पर संग्रहीत डेटाओ की बाइनरी यानि 1, 0 के रुप मे डिजिटल व्याख्या किया जाता है।

इसके पीछे का इतिहास

इसका इतिहास काफी दिलचस्प बडा है, इसके पिछे कई प्रतिस्पर्धी समूह और तकनीकी नवाचार शामिल हैं। इसकी इतिहास कि बात कि जाए तो यह सन 90 के दशक की मध्य से शुरू होता है जब दो अलग-अलग समूह इस ऑप्टिकल डिस्क प्रारूप के अपने-अपने संस्करणों पर काम कर रहे थे। जहा सोनी और फिलिप्स एक समूह का नेतृत्व कर रहे थे,यही दूसरी और में तोशिबा, पैनासोनिक और टाइम वार्नर इसकी संस्करणों पर काम कर रहे थे।

हलांकी, ये दोनों समूहों अपने अलग अलग विचार धारा के साथ काम कर रहे थे। जहा सोनी और फिलिप्स जैसी निर्माता कंपनी एक ऐसी डिस्क पर विचार कर रहे थे जिसमें सूचनाओं को कई परतों मे उपयोग किया जा सके, जबकि तोशिबा और उसके सहयोगी ने छोटे गड्ढों और भूमि के साथ एकल-परत बाली डिस्क की निर्माण को प्राथमिकता दे रहे थे। आखिरकार, वर्षों की कोशिशो के बाद इन दोनों समूह के विच आम सहमती बनी और वे दोनों प्रस्तावों के तत्वों को मिलाते हुये इस काम को आगे ले जाने का फेसला किया, और 1995 में उन्होंने डिजिटल वर्सटाइल डिस्क के निर्माण पर काम शुरु करने का एलान किया।

डिजिटल वर्सेटाइल डिस्क का विकास

1996 से लेकर 97 तक, DVD में Read और write जैसी नई तकनीकों को विकसित किया गया, जिनके साथ उपयोगकर्ताओं एक खालि डिस्क पर अपनी स्वयं की पसंदीदा सामग्री रिकॉर्ड करने मे सक्षम थे। साथही प्रगतिशील स्कैन, और डिजिटल ऑडियो आउटपुट जैसी सुविधाओं के साथ यह और अधिक उन्नत हो गई।

हालाँकि, नेटफ्लिक्स और हुलु जैसी स्ट्रीमिंग सेवाओं के चलते हाल के वर्षों में, इसकी लोकप्रियता मे कमी आ गई है। लेकिन, आज भी कई लोग आपनी पसंदीदा मीडिया के रुप मे इसका उपीयोग करते है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसके साथ डिजिटल डेटाए भौतिक रुप से रिकॉर्ड किया जा सकता है और उन्है एक संपत्ति के रुप मे सहेझा जा सकता है।

DVD और CD में बुनियादी अंतर

वे दोनों ही ऑप्टिकल स्टोरेज मीडिया हैं, और इनका उपयोग डिजिटल डेटा को ष्टोर और प्ले करने के लिए किया जाता है। इसमें एक सीडी की तुलना में अधिक ष्टोरेज क्षमता और बिषेषता होती है और इसका उपयोग मुख्य रूप से वीडियो सामग्री के लिए किया जाता है।

जबकि सीडी का उपयोग आमतौर पर संगीत या डेटा स्टोरेज के लिए किया जाता है। इसे दोहरी परतों में लिखा जा सकता है, जिसके कारण इस पर अधिक डेटाए संग्रहीत किया जा सकता है। हालाँकि, इन दोनों डिस्क के बीच कुछ वुनियादि अंतर हैं और इन्हें नीचे दी गई तालिका में दिखाया गया है:

विशेषतासीडीडीवीडी
फुल फर्मकॉम्पैक्ट डिस्कडिजिटल वर्सेटाइल डिस्क
परतेंसिंगलडवल
डेटा धारक क्षमता700 एमबी4.7 जीबी से 17.08 जीबी
उपयोगऑडियो ष्टोरेजवीडियो स्टोरेज और प्लेबैक, डेटा स्टोरेज, गेमिंग
लेजर तरंग दैर्ध्य780 नैनोमीटर650 नैनोमीटर
व्यास120 मिमी120 मिमी
डेटा ट्रांसफर गति150 केबी/एस से 7800 केबी/एस11.08 एमबी/एस से 16.62 एमबी/एस

पहली डीवीडी कब लॉन्च की गई थी?

ये वर्ष 1993 में बनी पहले की सीडी तकनीक से विकसित हुया। यह उच्च घनत्व वाली सीडी की एक उन्नत तकनीक है। कोई भी व्यक्ति या कंपनी इसकी आविष्कार का दावा नहीं कर सकता, बलकी कई लोगों और कंपनियों की प्रायास ने इसे विकसित किया।

इसे दो प्रतिस्पर्धी प्रस्तावित स्वरूपों अर्थात् MMCD और SD प्रारूप में विकसित किया गया था। एमएमसीडी प्रारूप सोनी, फिलिप आदि द्वारा पेश किया गया था, दुसरी और एसडी प्रारूप को तोशिबा, टाइम वार्नर, मात्सुशिता और अन्य द्वारा लाया गया था।

लेकिन दो प्रारूपो मे वटे होने के कारण इसमे भ्रम की स्थिति पैदा होने के साथ साथ अधिक लागत की संभावनाएं थीं। ऐसे मे IBM जैसी कंपनि के नेतृत्व मे इन दो प्रारूपो के विच एक आम सहमती बनाई और 1995 मे संयुक्त रूप से पहला DVD लॉन्च किया गया।

पहला डीवीडी प्लेयर किसने विकसित किया?

पहला प्लेयर 1996 में जापान में विश्व प्रसिद्ध इलेक्ट्रॉनिक डेवलपर कंपनी तोशिबा द्वारा लॉन्च किया गया था। 1997 तक, यह संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ-साथ यूरोप और ऑस्ट्रेलिया में भी उपलब्ध था। उसके बाद, इसकी बड़ी मात्रा में डेटा पढ़ने की क्षमता और एक पारंपरिक VHS टेप की तुलना में बेहतर ऑडियो/वीडियो गुणवत्ता के कारण इसे तेजी से लोकप्रियता मिली।

Conclusion

तो, उम्मीद है अबतक आपने DVD क्या है? और DVD का full form क्या है, इसके बारे मे लगवग सारी बाते जान चुके होंगे। संक्षेप में कहा जाए तो इसने दो दशकों से अधिक समय तक मनोरंजन कि दुनिया में आपनी भूमिका निभाई है। उच्च गुणवत्ता वाले वीडियो स्टोरेज और प्लेबेक की क्षमता के साथ, इस पॉलीमर स्टोरेज डिस्क ने मनोरंजन के तरीको को पुरी तरह से बदल दिया है।

हालाँकि, डिजिटल स्ट्रीमिंग तकनीक के उदय के साथ इसका महत्व धीरे-धीरे कम होता गया। लेकिन इसके बवजुद भी, इसकी की संग्रह अभी भी कई लोगों के लिए एक भावनात्मक मूल्य रखता है और घटती संख्या के साथ इसे बेचा जाना जारी रखता है।

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